۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
रहबर

हौज़ा/क़ुरआनी आयतों की रौशनी में हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई का बेहद मार्गदर्शक बयान,

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, क़ुरआनी आयतों की रौशनी में आयतुल्लाह ख़ामेनेई का बेहद मार्गदर्शक बयान;सूरह आले इमरान में दो मौक़े हैं और हैरत की बात है कि ये दोनों ही बातें एक ही सूरह में और काफ़ी हद तक एक ही विषय से संबंधित हैं, अलबत्ता दो वाक़यात हैं, लेकिन ये दोनों वाक़यात एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें दो तरह के नियमों को बयान किया जा रहा हैः जीत का नियम, हार का नियम। एक आले इमरान सूरे की आयत नंबर 173 में हैः वे कि जिनसे लोगों ने कहा कि लोगों ने तुम्हारे ख़िलाफ़ बड़ा लश्कर बनाया है।

इसलिए तुम उनसे डरो, तो इस बात से उनका ईमान और बढ़ गया और उन्होंने कहा कि हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह अच्छा कारसाज़ है। तो ये लोग अल्लाह के करम से इस तरह अपने घरों की तरफ़ लौटे कि उन्हें किसी क़िस्म की तकलीफ़ ने छुआ भी नहीं था... इसका वाक़ेआ आपने सुना ही होगा, पैग़म्बर ज़ख़्मी हो गए, अमीरुल मोमेनीन ज़ख़्मी हो गए, काफ़ी तादाद में लोग ज़ख़्मी हुए, थक हार कर, ज़ख़्मी होकर मदीना वापस लौटे। उधर क़ुरैश, यही दुश्मन जो कुछ नहीं कर पाया था -उसने चोट तो ज़रूर पहुंचायी थी, लेकिन मुसलमानों से जीत नहीं पाया था- ये लोग मदीने के बाहर, मदीने से कुछ किलोमीटर की दूरी पर इकट्ठा हुए।

उन्होंने फ़ैसला किया कि आज रात हमला करेंगे, ये लोग थके हुए हैं, ये कुछ नहीं कर पाएंगे, आज ही काम तमाम कर देंगे। उनके एजेंट मदीने के अंदर आ गए और उन्होंने ख़ौफ़ फैलाना शुरू कर दियाः वे कि जिनसे लोगों ने कहा कि लोगों ने तुम्हारे ख़िलाफ़ बड़ा लश्कर बनाया है, इसलिए तुम उनसे डरो, उन्होंने कहाः तुम्हें पता है, ख़बर भी है कि वे लोग इकट्ठा हो गए हैं, लश्कर तैयार कर लिया है, तुम्हें तबाह कर देना चाहते हैं! आज रात हमला कर देंगे और ऐसा कर देंगे, वैसा कर देंगे! ख़ौफ़ फैलाने का काम। जिन लोगों को डराने की कोशिश कर रहे थे, उन्होंने कहाः उन्होंने कहा कि हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है।

और वह अच्छा कारसाज़ है, उन्होंने कहाः जी नहीं हम नहीं डरते, अल्लाह हमारे साथ है। पैग़म्बर ने फ़रमायाः वे लोग जो आज ओहद में ज़ख़्मी हुए हैं, इकट्ठा हों। वे सब इकट्ठा हो गए, आपने फ़रमायाः उनके मुक़ाबले में जाओ। वे लोग गए और उन्हें शिकस्त देकर लौटेः वे अल्लाह की नेमत और करम के साथ लौटे, काफ़ी ज़्यादा ग़नीमत के माल के साथ लौटे और उन्हें कोई मुश्किल भी पेश नहीं आयी, दुश्मन को शिकस्त देकर लौट आए। यह अल्लाह का नियम है। इसलिए दुश्मन की ओर से डर फैलाए जाने पर आपने सही अर्थ में इस बात पर यक़ीन रखा कि हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह अच्छा कारसाज़ है। और अपने फ़रीज़े को पूरा किया तो उसका नतीजा यह है। आले इमरान सूरे का यह हिस्सा, हमारे सामने इस नियम को बयान करता है। यह ओहद के बाद का वाक़ेआ था। मिसाल के तौर पर ओहद की जंग ख़त्म होने के कुछ घंटे बाद का।

मामले का दूसरा हिस्सा ख़ुद ओहद के अंदर का है, ओहद की जंग में पहले मुसलमानों को फ़तह हासिल हुयी थी, यानी उन्होंने पहले हमला किया और दुश्मन को हरा दिया फिर जब दुनिया की लालच में उस दर्रे को गवां दिया तो मामला बिल्कुल उलट गया। क़ुरआने मजीद आले इमरान सूरे में ही उसे बयान करता और कहता हैः और यक़ीनन अल्लाह ने तुमसे किया गया वादा सच कर दिखाया, अल्लाह ने तुमसे अपना वादा पूरा कर दिया- हमने वादा किया था कि अगर तुम अल्लाह के लिए जेहाद करोगे तो हम तुम्हें फ़ातेह बना देंगे, हमने अपने वादे को पूरा कर दिया- अल्लाह की इजाज़त से तुम उन पर दबाव डालने और उखाड़ फेंकने में कामयाब हो गए, पहले तुम्हें कामयाबी हासिल हुयी। तो यहाँ अल्लाह ने अपना काम कर दिया, अल्लाह ने तुमसे जो वादा किया था।

उसे पूरा कर दिया, लेकिन फिर तुमने क्या किया? अल्लाह के वादे के पूरा होने पर शुक्र करने के बजाए, अल्लाह के उस एहसान का शुक्र अदा करने के बजाए, यहां तक कि तुम्हारे क़दम ढीले पड़ गए, तुम्हारे क़दमों में ढीलापन आ गया, तुम्हारी आँखें ग़नीमत के माल पर टिक गयीं, तुमने देखा कि कुछ लोग, ग़नीमत का माल इकट्ठा कर रहे हैं, तो तुम्हारे क़दम ढीले पड़ गए, और तुम झगड़ने लगे, तुम एक दूसरे से उलझ गए, तुममें मतभेद हो गया। देखिए, क़ुरआन के इन जुमलों पर सामाजिक विज्ञान की नज़र से वैज्ञानिक रिसर्च होनी चाहिए, यह कि किस तरह मुमकिन है कि एक मुल्क, एक हुकूमत, एक राज्य तरक़्क़ी करे, कैसे तरक़्क़ी रुक सकती है और कैसे वह हुकूमत पतन का शिकार हो सकती है? इन बातों को क़ुरआन की इन आयतों में ढूंढिए। यहां तक कि तुम्हारे क़दम ढीले पड़ गए, तुम झगड़ पड़े और तुमने नाफ़रमानी की। तुमने नाफ़रमानी की, पैग़म्बर ने तुमसे कहा था कि यह काम करो, तुमने नहीं किया, फिर जब ऐसा हो गया, तुम जो चाहते थे उसे तुमको दिखाने के बाद, जो तुम चाहते थे, यानी अल्लाह की मदद, उसे अल्लाह ने तुम्हें दे दिया था, दिखा दिया था, तुम पूरी मदद तक पहुंचने ही वाले थे, लेकिन तुमने इस तरह की हरकत अंजाम दी, फिर (यह इसलिए कि) तुममें कुछ दुनिया के तलबगार थे और कुछ आख़ेरत के तलबगार थे, फिर उसने तुम्हें उनके मुक़ाबले में शिकस्त में मुबतला कर दिया। (सूरए आले इमरान आयत 152) यहाँ भी अल्लाह ने अपने नियम पर अमल किया, उन पर तुम्हारी बढ़त ख़त्म कर दी, उन पर से तुम्हारा प्रभुत्व ख़त्म कर दिया, यानी तुम हार गए, यह अल्लाह की परंपरा ही तो है। वहाँ अल्लाह का नियम यह था कि दुश्मन की ओर से ख़ौफ़ फैलाए जाने के ख़िलाफ़ डट जाओ और आगे बढ़ो, यहाँ अल्लाह का नियम यह है कि दुनिया, दुनिया हासिल करने की इच्छा, काम न करने, कठिनाई न उठाने और आसान काम तलाश करने वग़ैरह जैसी बातों के ज़रिए अपने आपको और दूसरों को तबाह करो। यह दोनों आयतें आले इमरान सूरे में एक दूसरे के क़रीब हैं, ये दो परंपराओं को बयान करती हैं। क़ुरआन मजीद अल्लाह के इन नियमों से भरा हुआ है, मैंने कहा कि क़ुरआन के शुरु से आख़िर तक जैसे जैसे आप देखते हैं, अल्लाह के नियमों को बयान किया जाता है और दोहराया जाता है, कई जगह यह भी कहा गया हैः अल्लाह का नियम पहले से यही थी, उसके नियम में कभी तबदीली नहीं पाओगे। (सूरए फ़तह आयत 23) -चार पाँच जगहों पर इस तरह की बातें हैं- अल्लाह फ़रमाता हैः अल्लाह के नियमों में कोई बदलाव नहीं होता, अल्लाह के नियम, ठोस नियम हैं। किसी के साथ अल्लाह की रिश्तेदारी नहीं है कि हम कहें कि हम मुसलमान हैं, शिया हैं, इस्लामी जमहूरिया हैं इसलिए हम जो चाहें कर सकते हैं! नहीं। दूसरों और हम में कोई फ़र्क़ नहीं है, अगर हमने अपने आपको पहले वाले नियम के मुताबिक़ ढाला तो उसका नतीजा वह है, अगर दूसरी तरह के नियमों के मुताबिक़ ढाला तो उसका नतीजा यह है, यह निश्चित है, इसमें कोई बदलाव नहीं होगा।

इमाम ख़ामेनेई,28 जून 2022

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .